भस्म का श्रृंगार : मोह-माया से विरक्ति के लिए…

भस्म का श्रृंगार : मोह-माया से विरक्ति के लिए… एक मान्यता के अनुसार शिव अपने शरीर पर चिता की राख मलते हैं और संदेश देते हैं कि आखिर में सब कुछ राख हो जाना है, ऐसे में सांसारिक चीज़ों को लेकर मोह-माया के वश में ना रहे और भस्म की तरह बनकर स्वयं को प्रभु को समर्पित कर दें।
भस्म विध्वंस का भी प्रतीक है। क्योंकि ब्रह्मा अगर सृष्टि के निर्माणकर्ता हैं और विष्णु पालनकर्ता तो महेश को सृष्टि का विनाशक माना जाता है। मान्यता के अनुसार जब सृष्टि में नकारात्मकता बहुत ज़्यादा बढ़ जाती है तो शिव संहारक के रूप में आते हैं और सब कुछ विध्वंस कर डालते हैं। इससे एक अन्य मान्यता ये भी है कि भस्म उस विध्वंस का प्रतीक है जिसकी याद शिव सबको दिलाते हैं कि सभी सद्कर्म करें अन्यथा अंत में व सब राख कर देंगे।

में उज्जैन में प्रकट हुए थे । दूषण संसार का काल था और शिव शंकर ने उसे खत्म कर दिया इसलिए शंकर भोलेनाथ महाकाल के नाम से पूज्य हुए। अतः दुष्ट दूषण का वध करने के पश्चात् भगवान शिव कहलाये कालों के काल महाकाल उज्जैन में महाकाल का वास होने से पुराने साहित्य में उज्जैन को महाकालपुरम भी कहा गया है। उज्जैन में एक कहावत प्रसिद्ध है “अकाल मृत्यु वो मरे जो काम करे चांडाल का, काल भी उसका क्या बिगाड़े जो भक्त हो महाकाल का ”

भस्म से स्नान : एक बेहद गहरा राज…
पुराणों में मोक्ष देनेवाली यानी जीवन और मृत्यु के चक्र से छुटकारा दिलाने वाली जिस सप्तनगरी का ज़िक्र है और उन सात नगरों में एक नाम उज्जैन का भी है। जबकि दूसरी तरफ महादेव का वो आयाम है जिसे महाकाल कहते हैं, जो मुक्ति की ओर ले जाता है। उज्जैन में कालभैरव व गढ़कालिका भी हैं, जिसमें काल

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