मंगल प्रदोष पूजा हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण रीति–रिवाज है जो भगवान शिव की पूजा के रूप में की जाती है। इस पूजा को हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रति मास में दो बार किया जाता है, एक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को और एक मास की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को। इसे ‘मंगल प्रदोष‘ कहा जाता है क्योंकि इसे बुधवार को किया जाता है, जो हिन्दी में ‘मंगलवार‘ कहलाता है, और भगवान शिव को बहुत अधिक प्रिय हैं। इस रिवाज के माध्यम से भगवान शिव की कृपा प्राप्ति की जाती है और भक्तों को शिव भक्ति में आगे बढ़ने का साहस और सामर्थ्य मिलता है।
पूजा का समय और उपयुक्तता
मंगल प्रदोष पूजा का समय शाम के समय होता है, जब सूर्यास्त के बाद सूर्य अस्त हो जाता है और संध्या का समय आरंभ होता है। इस समय में भगवान शिव की पूजा करने से विशेष फल प्राप्त होता है और भक्त अपने जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि को प्राप्त कर सकते हैं।
आयोजन
मंगल प्रदोष पूजा का आयोजन एक विशेष पूजा स्थल पर किया जाता है, जो हिन्दू धर्म के मंदिर, आश्रम या घर के पूजा स्थल पर हो सकता है। यहां हम मंगल प्रदोष पूजा की विधि को सात स्थानों में विभाजित करके विस्तार से जानेंगे:
1. संकल्प (समर्थन)
पूजा की शुरुआत संकल्प के साथ होती है, जिसमें भक्त अपनी पूरी श्रद्धांजलि भगवान शिव को अर्पित करता है। संकल्प में भक्त को अपने सभी पापों के क्षमाप्राप्ति के लिए भी प्रार्थना करनी चाहिए।
2. गणेश पूजा
भगवान गणेश की पूजा से हर कार्य में सिद्धि होती है, इसलिए पहले गणेश जी की पूजा की जाती है। गणेश पूजा के बाद श्री गणेश को वंदना किया जाता है।
3. कलश स्थापना
एक कलश में जल भरकर उसे शिवलिंग के सामने स्थापित करें। इसके बाद कलश पर चंदन, कुंकुम, अभिषेक सामग्री आदि से सजाकर उसे पूजा के लिए तैयार करें।
4. शिवलिंग पूजा
शिवलिंग को गंगा जल या पंचामृत से स्नान कराएं और उस पर चंदन, कुंकुम, अभिषेक सामग्री, बेल पत्र, धूप, दीप, फूल आदि से सजाकर पूजा करें।
5. रुद्राभिषेक
मंगल प्रदोष पूजा में रुद्राभिषेक अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसमें शिवलिंग पर गंगाजल, धनिया पत्र, बिल्व पत्र, रुद्राक्ष, फूल, दूध, घृत, चावल, दही आदि से अभिषेक किया जाता है। रुद्राभिषेक के दौरान महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना भी अत्यंत शुभ है।
6. धूप–दीप आराधना
शिवलिंग को धूप और दीप से सजाकर उन्हें अर्पित करें। धूप से आत्मा को उच्च स्तर की प्राप्ति होती है और दीप से अंधकार का नाश होता है।
7. प्रार्थना और आरती
पूजा के अंत में भक्त शिवजी से अपनी मनोकामनाओं की प्रार्थना करते हैं और आरती गाते हैं। इसके बाद प्रशाद बांटा जाता है और भक्तों को शिवलिंग का प्रदर्शन कराया जाता है।
मंगल प्रदोष पूजा का आयोजन आपकी विशेष प्राथमिकताओं और सामर्थ्य के आधार पर होता है। पूजा के बाद भक्तों को प्रसाद मिलता है और उन्हें यह आशीर्वाद होता है कि वह शिवजी की कृपा से सदैव सुखी और समृद्धि से भरी जीवन यापन करें।
मंगल प्रदोष पूजा विधि का पालन करने से भक्त भगवान शिव के प्रति अपनी भक्ति को सुनिश्चित करता है और उनकी कृपा को प्राप्त होता है। इस पूजा में भक्ति, श्रद्धा, और निष्कलंक भावना के साथ पूजन करना चाहिए ताकि व्यक्ति शिवजी की आराधना में लीन हो सके और उनके आशीर्वाद से जीवन को सफलता और सुख–शांति प्राप्त हो सके।