भारत में विभिन्न स्थानों पर पितृ पूजा का महत्व हमेशा से रहा है। पितृ पूजा के लिए कई प्रमुख स्थल हैं, जहां पितृओं को श्रद्धापूर्वक समर्पित किया जाता है। ये स्थल भारतीय संस्कृति और धार्मिकता का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। पितृ तर्पण, पिंड दान, और पूजा के माध्यम से पितृओं को शांति मिलती है। इन स्थलों पर जाकर लोग अपने पूर्वजों की आत्मा को शांति देते हैं और उनके आत्मा को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
विष्णुप्रयाग:-
धौलीगंगा और अलकनंदा नदियों का मिलनसार संगम, यहां अत्यंत पावनता का अनुभव होता है। इस स्थान को आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व है। यहां ऋषि नारद ने भगवान विष्णु की तपस्या की थी, जिससे उन्हें दर्शन प्राप्त हुए थे। विष्णुप्रयाग ध्यान और मन की शुद्धता के लिए एक आध्यात्मिक अनुभव का स्रोत है।
नंदप्रयाग: –
अलकनंदा और मंदाकिनी नदियों के संगम को नंदप्रयाग कहते हैं। यह समुद्र तल से 2805 फुट की ऊंचाई पर है। पौराणिक कथा के मुताबिक इस स्थान पर मंदाकिनी और अलकनंदा के संगम स्थल पर नंद महाराज ने भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए और पुत्र की प्राप्ति की कामना के लिए कठोर तप किया था। यहां पर नंदादेवी का दिव्य और भव्य मंदिर है। नन्दा का मंदिर, नंद की तपस्थली एवं नंदाकिनी के संगम के कारण इस स्थान का नाम नंदप्रयाग पड़ा।
कर्णप्रयाग: –
अलकनंदा तथा पिण्डर नदियों का संगम स्थल कर्णप्रयाग के नाम से विख्यात है। पिण्डर नदी को कर्ण गंगा भी कहा जाता है। इसलिए इस तीर्थ संगम का नाम कर्ण प्रयाग पडा। यहां पर उमा मंदिर और कर्ण मंदिर स्थित है। संगम स्थल पर मां भगवती उमा का अत्यंत प्राचीन मंदिर है। कहते हैं कि यहां पर दानवीर कर्ण ने कठोर तपस्या की थी और यहां पर संगम से पश्चिम दिशा की तरफ शिलाखंड के रूप में दानवीर कर्ण की तपस्थली और मन्दिर हैं। कर्ण की तपस्थली होने के कारण ही यह पवित्र पावन स्थान कर्णप्रयाग के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
रुद्रप्रयाग:-
मंदाकिनी तथा अलकनंदा नदियों के संगम पर रुद्रप्रयाग स्थित है। संगम स्थल क्षेत्र में चामुंडा देवी व रुद्रनाथ मंदिर है। मान्यता है कि नारद मुनि ने इस पर संगीत के रहस्यों को जानने के लिये रुद्रनाथ महादेव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया था। पौराणिक मान्यता है कि यहां पर ब्रह्मा की आज्ञा से देवर्षि नारद ने कई वर्षों तक भगवान शंकर की तपस्या की थी भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर नारद को सांगोपांग गांधर्व शास्त्र विद्या से पारंगत किया था। यहां पर भगवान शंकर का रुद्रेश्वर नामक लिंग है। यहीं से केदारनाथ के लिए तीर्थ यात्रा शुरू होती है।
देवप्रयाग:-
देवप्रयाग में अलकनंदा तथा भागीरथी नदियों का संगम है। देवप्रयाग समुद्र तल से 1500 फुट की ऊंचाई पर है। गढ़वाल क्षेत्र में भगीरथी नदी को सास तथा अलकनंदा नदी को बहू कहा जाता है। देवप्रयाग में शिव मंदिर तथा रघुनाथ मंदिर हैं। रघुनाथ मंदिर द्रविड़ शैली से निर्मित है। देवप्रयाग को सुदर्शन क्षेत्र भी कहा जाता है। स्कंद पुराण के केदारखंड में इस तीर्थ ब्रह्मपुरी क्षेत्र कहा गया है लोक कथाओं के
अनुसार देवप्रयाग में देव शर्मा नामक ब्राह्मण ने सतयुग में निराहार ने सूखे पत्ते चबाकर तथा एक पैर पर खड़े रहकर कई वर्षों तक कठोर तप किया और भगवान विष्णु के दर्शन कर वर प्राप्त किया।
अगर आप पंच प्रयाग नहीं जा सकते हैं: आध्यात्मिक यात्रा के लिए इस स्थान पर ज़रूर जाएँ
- उज्जैन (मध्यप्रदेश) : उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित सिद्धवट पर श्राद्ध कर्म के कार्य किए जाते हैं।
- लोहानगर (राजस्थान) : इसे लोहार्गल कहते हैं। यहां पांडवों ने अपने पितरों के लिए सुरजकुंड में मुक्ति का कार्य किया था। यहां खासकर अस्थि विसर्जन होता है। यहां तीन पर्वत से निकलने वाली सात धाराएं हैं।
- प्रयाग (उत्तर प्रदेश) : त्रिवेणी संगम पर गंगा नदी के तट पर मुक्ति कर्म किया जाता है।
- हरिद्वार (उत्तराखंड) : यहां हर की पौड़ी पर सप्त गंगा, त्रि गंगा और शकावर्त में मुक्ति कर्म किया जाता है।
- पिण्डारक (गुजरात) : पिंडारक प्राभाष क्षेत्र में द्वारिका के पास एक तीर्थ स्थान है। यहां पितृ पिंड सरोवर है।
- नाशिक (महाराष्ट्र) : यहां गोदावरी नदी के तट पर मुक्ति कर्म किया जाता है।
- गया (बिहार) : गया में फल्गु नदी के तट पर मुक्ति कर्म किया जाता है।
- ब्रह्मकपाल (उत्तराखंड) : कहते हैं जिन पितरों को गया में मुक्ति नहीं मिलती या अन्य किसी और स्थान पर मुक्ति नहीं मिलती उनका यहां पर श्राद्ध करने से मुक्ति मिल जाती है। यह स्थान बद्रीनाथ धाम के पास अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है।
- मेघंकर (महाराष्ट्र) : यहां पैनगंगा नदी के तट पर मुक्ति कर्म किया जाता है।
- लक्ष्मण बाण (कर्नाटक) : यह स्थान रामायण काल से जुड़ा हुआ है। लक्ष्मण मंदिर के पीछे लक्ष्मण कुंड है जहां पर मुक्ति कर्म किया जाता है। ऐसा भी माना जाता है कि यहां पर श्रीराम ने अपने पिता का श्राद्ध किया था।